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कविता: लौट चलो अब गाँव (नरेंद्र सिंह, मोहनपुर, अतरी, गया, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नरेंद्र सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “लौट चलो अब गाँव”:

लौट चलो अब गाँव, वहां रहो किसान बनके

छोड़ो अब ये शहर शान, इसे बिरान करके।

वो गलियाँ, पगडंडी, मंदिर चबूतरा पुराना;

वहां तो सब अपना है, शहर में सब बेगाना।

बदलो अब  विदेशी भेष, रहो किसान बनके;

छोड़ो अब ये शहर शान, इसे बिरान करके।

दूसरों के पेट जो भर सके, वो खरीद के खाता

खेत खलिहान सम्भालो, बनके अब अन्नदाता।

गाँव मे  हरियाली लाओ, रहो अब  वहां जमके।

लौट चलो अब गांव, वहां रहो किसान बनके।

कौवा मैना को पुकारो, आंगन में अन्न को छींटके

चिड़ियां फिर चहके आंगन, अब न हमसे बिदके।

स्वागत के लिए अतिथि, अब न द्वार पर तरसे,

साधु, भिक्षु भूखा न लौटे, उनका आशीष बरसे।

छोड़ो अब ये शहर ठिकाना, इसे बिरान करके

लौट चलो सब गाँव, वहां रहो किसान बनके।