पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
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है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ● राजमती पोखरना सुराना की एक कविता जिसका शीर्षक है “काश नारी पत्थर की होती”:
क्या होता काश नारी
पत्थर की होती,
ममता का सागर नही होता
कितनी कठोरता होती,
कोई तोड़ नहीं पाता उसके
मन मंदिर के दरवाजे,
वीणा के तार से वो कभी
उदासीन नहीं होती।
मन पावन ह्रदय में बसता
जहाँ अथाह प्यार का सागर,
पत्थर सा दिल होने पर
क्या वो हंसते हंसते दर्द सहती।
नाजुकता, कोमलता से सदा मन रहता रीता,
काश नारी दुनियाँ मे दिल
से पत्थर ही होती।
देवी बन कर पूजित करता
है जिस नारी को ,
वो कठोरमना बन पापियों
का किया संहार करती।
नहीं लाती मन में ऐसे
दुराचारियों के लिये उदारता,
बन जाती वह सिंहनी दरिदो
को मार गिराती।
जमाने ने उसे कितना दर्द
दिया है पग पग पर पर,
चेतन मन को कर अवचेतन
ज़िस्म को रौंद दिया हर पल,
कब तक मूक बन अपने
अधिकारों के लिए लड़ती रहेंगी,
मानसिक विकृतियों से हो
चिन्तित हर पल मरती।
पत्थर दिल होने पर बन
जाता उसका मन मंदिर,
ना होती कोई चुनौतियां
स्वछन्द विचरण वो करती,
हवस की शिकार बनने पर
ऑखों से अश्क नहीं बहाती,
वह अलौकिक शक्ति बन
दरिंदो का जीना हराम कर देती।
तब कोई कैसे उसकी अग्नि
परीक्षा ले चरित्र का प्रमाण मांगता,
ना कभी वो मनुष्य के
अत्याचारों को सहती,
नीरवता, निर्भीकता, निर्जीवता का होता
समावेश,
और मुक्त गगन के मानकों
की अलग ही कोई कहानी होती। ।