पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार एस● के● कपूर "श्री हंस" की एक कविता जिसका शीर्षक है “प्रेम”:
आजकल घर नहीं ,पत्थर
के मकान होते हैं।
प्रेम से शून्य खामोश, दिल वीरान होते हैं।।
घर को रैन बसेरा कहना, ही ठीक होगा।
कुत्ते से सावधान दरवाजे, की शान होते हैं।।
घर में प्रेम भाव नहीं, सूने से ठिकाने हैं।
मकान में कम बोलते ,मानो कि बेगाने हैं।।
सूर्य चंद्रमा की किरणें ,नहीं आती हैं यहां।
संस्कारों की बात वाले, हो चुके पुराने हैं।।
हर किरदार में अहम , का भाव होता है।
स्नेह प्रेम नहीं दीवारों ,से लगाव होता है।।
समर्पण का समय ,नहीं किसी के पास।
आस्था आशीर्वाद का ,नहीं बहाव होता है।।
आदमी नहीं मशीनों , का वास होता है।
पैसे की चमक का, असर खास होता है।।
मूर्तियाँ ईश्वर की होती, बहुत ही आलीशान।
पर उनसे प्रेम कहीं नहीं, आसपास होता है।।
प्रेम विहीन यहां पर,ऊंचे
मचान होते हैं।
मतलब के ही आते, मेहमान होते हैं।।
दौलत से मिलती , नकली खुशी यहाँ।
पैसे पर खड़े घर नहीं ,बड़े मकान होते हैं।।
प्रेम से शून्य खामोश, दिल वीरान होते हैं।।
घर को रैन बसेरा कहना, ही ठीक होगा।
कुत्ते से सावधान दरवाजे, की शान होते हैं।।
मकान में कम बोलते ,मानो कि बेगाने हैं।।
सूर्य चंद्रमा की किरणें ,नहीं आती हैं यहां।
संस्कारों की बात वाले, हो चुके पुराने हैं।।
स्नेह प्रेम नहीं दीवारों ,से लगाव होता है।।
समर्पण का समय ,नहीं किसी के पास।
आस्था आशीर्वाद का ,नहीं बहाव होता है।।
पैसे की चमक का, असर खास होता है।।
मूर्तियाँ ईश्वर की होती, बहुत ही आलीशान।
पर उनसे प्रेम कहीं नहीं, आसपास होता है।।
मतलब के ही आते, मेहमान होते हैं।।
दौलत से मिलती , नकली खुशी यहाँ।
पैसे पर खड़े घर नहीं ,बड़े मकान होते हैं।।