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कविता: मातृभूमि (डॉ● गुणबाला आमेटा, उदयपुर, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ गुणबाला आमेटा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मातृभूमि”:
 
मातृभूमि को तू अपने कर्म से निहाल कर।
उकेर दे तू नाम अपना काल के कपाल पर।।
बिखेर दे तू रोशनी, तिमिर का विनाश कर।
लक्ष्य को तू भेद दे, उठा धनुष प्रहार कर।।
प्रचंड सिंधु लहरों से, तू डर ना, उनको पार कर।
कर ले अपनी कोशिशें, न बैठ हार मानकर।।
सुख सूर्य के उदय का आसमान तू बहाल कर।
मातृभूमि के लिए, तू देह को निसार कर।।
मेघ सी हो गर्जना, और सिंह सी दहाड़ कर।
धधक रही है ज्वाला, तेरे बाजुओं में वार कर।।
बज गई है दुंदुभी, तू युद्ध का निनाद कर।
दाग दे तू गोलियां, गोलों की बौछार कर।।
ये ज़मीं और ये फलक, कह रहे पुकार कर।
कसम तुझे सिंदूर की और दूध की तू लाज रख।।
बैठे आज देशवासी, सीना अपना थाम कर।
निगाह सबकी तुझ पे है, तू शत्रु का संहार कर।।
कह रही है ये स्वतंत्रता तुझे पुकार कर।
जान दे, या जान ले, ये फैसला तू आज कर।।
मिटा रिपु की हस्ती को और मौत का श्रृंगार कर।
वतन पे जो तू मर मिटा, सर्वस्व अपना त्याग कर।।
असंख्य कीर्ति रश्मियां, ये कह रही है फैलकर।
दे रहा है ध्वज सलामी भी लहर लहर कर।।
फहरा गया है हिंद का तिरंगा जो तू थाम कर।
हो गया है लय तू अपने कर्ज को उतार कर।।
मातृभूमि को तू अपने कर्म से निहाल कर।
उकेर दे तू नाम अपना काल के कपाल पर।।