पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुधीर श्रीवास्तव की एक लघुकथा जिसका
शीर्षक है “पति का
करवा चौथ":
पिछले छःमाह से लीना बिस्तर से उठ तक नहीं पा रही थी।उसकी बीमारी का शायद कोई इलाज न था। डाक्टरों के अनुसार उसे कोई बीमारी नहीं है। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
लीना के पति रघुवर ने लीना को बहुत सहारा दिया। क्योंकि अब तो लीना की दिनचर्चा बिस्तर पर ही बीत रही थी।
पिछले छःमाह से लीना बिस्तर से उठ तक नहीं पा रही थी।उसकी बीमारी का शायद कोई इलाज न था। डाक्टरों के अनुसार उसे कोई बीमारी नहीं है। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
लीना के पति रघुवर ने लीना को बहुत सहारा दिया। क्योंकि अब तो लीना की दिनचर्चा बिस्तर पर ही बीत रही थी।
लेकिन रघुवर ने बहुत ही सलीके से सब कुछ व्यवस्थित कर रखा था। हालांकि दोनों इस स्थिति में चिंतित थे। पर शायद ईश्वरीय विधान में यही सब था।
रघुवर आर्थिक रुप से भी टूटते जा रहे थे। परंतु लीना को इसका अहसास तक नहीं होने देते थे। हर समय उसे खुश रखने और हौसला देने का ही प्रयास करते। ऊपर से दुर्भाग्य ये कि वे बेऔलाद भी थे।
इसी बीच करवा चौथ आ गया। लीना व्रत को लेकर परेशान होने लगी, तब रघुवर ने उसे हौसला दिया कि परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। इस बार का करवा चौथ का व्रत मैं तुम्हारे लिए रखूंगा। पहले तो लीना नाराज हुई फिर मजबूरी में उसे रघुवर की बात मान ली।
करवा चौथ के दिन पड़ोसी की बेटी ने आकर लीना के हाथों को सुंदर ढंग से मेंहदी से सजा दिया। लीना बस चुपचाप देखती रही,क्योंकि उसे पता था कि रघुवर की जिद के आगे उसकी एक नहीं चलने वाली।
अब इसे विधि का विधान कहें या कुछ और, पर जब रघुवर अपनी जानकारी के हिसाब से पूजा करके नीचे आ रहा था तब उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। क्योंकि लीना खुद सीढियों की ओर धीरे धीरे बढ़ रही थी।
रघुवर तो खुशी से पागल सा हो गया। उसने लीना को बाँहों में भर लिया। दोनों की आँखों से आसुँओं का सैलाब उमड़ पड़ा। कुछ देर तक दोनों कुछ बोल नहीं पाये।
फिर लीना ने पहले रघुवर के, फिर अपने आँसुओं को पोंछा और कहा ! देखिये कितनी खुशी की बात है। करवा मैय्या ने तुम्हारा व्रत स्वीकार कर लिया।
अब चलो मुझे तुम्हारा व्रत भी तो तुड़वाना है।
रघुवर ने हाँ कहा। फिर लीना को सहारा देकर छत की ओर बढ़ा तो लीना ने कहा- कहाँ ले जा रहे हो।
रघुवर ने कहा-चलो तुम्हें चाँद का दर्शन करा दूँ।
लीना बोली- मेरा चाँद तो मेरे सामने है। अब मुझे और कुछ नहीं देखना। दोनों धीरे से मुस्कराते हुए वापस मुड़ गये।
लीना सोच रही थी उसके असली चाँद ने उसकी जिंदगी में खूबसूरत चाँद तारे भर दिए।
रघुवर आर्थिक रुप से भी टूटते जा रहे थे। परंतु लीना को इसका अहसास तक नहीं होने देते थे। हर समय उसे खुश रखने और हौसला देने का ही प्रयास करते। ऊपर से दुर्भाग्य ये कि वे बेऔलाद भी थे।
इसी बीच करवा चौथ आ गया। लीना व्रत को लेकर परेशान होने लगी, तब रघुवर ने उसे हौसला दिया कि परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। इस बार का करवा चौथ का व्रत मैं तुम्हारे लिए रखूंगा। पहले तो लीना नाराज हुई फिर मजबूरी में उसे रघुवर की बात मान ली।
करवा चौथ के दिन पड़ोसी की बेटी ने आकर लीना के हाथों को सुंदर ढंग से मेंहदी से सजा दिया। लीना बस चुपचाप देखती रही,क्योंकि उसे पता था कि रघुवर की जिद के आगे उसकी एक नहीं चलने वाली।
अब इसे विधि का विधान कहें या कुछ और, पर जब रघुवर अपनी जानकारी के हिसाब से पूजा करके नीचे आ रहा था तब उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। क्योंकि लीना खुद सीढियों की ओर धीरे धीरे बढ़ रही थी।
रघुवर तो खुशी से पागल सा हो गया। उसने लीना को बाँहों में भर लिया। दोनों की आँखों से आसुँओं का सैलाब उमड़ पड़ा। कुछ देर तक दोनों कुछ बोल नहीं पाये।
फिर लीना ने पहले रघुवर के, फिर अपने आँसुओं को पोंछा और कहा ! देखिये कितनी खुशी की बात है। करवा मैय्या ने तुम्हारा व्रत स्वीकार कर लिया।
अब चलो मुझे तुम्हारा व्रत भी तो तुड़वाना है।
रघुवर ने हाँ कहा। फिर लीना को सहारा देकर छत की ओर बढ़ा तो लीना ने कहा- कहाँ ले जा रहे हो।
रघुवर ने कहा-चलो तुम्हें चाँद का दर्शन करा दूँ।
लीना बोली- मेरा चाँद तो मेरे सामने है। अब मुझे और कुछ नहीं देखना। दोनों धीरे से मुस्कराते हुए वापस मुड़ गये।
लीना सोच रही थी उसके असली चाँद ने उसकी जिंदगी में खूबसूरत चाँद तारे भर दिए।