पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ• सुषमा सिंह की एक कविता जिसका शीर्षक है “ज़िन्दगी”:
सांप के कैंचुल
सी मैंने चाही छोढ़नी
ज़िन्दगी जौंक सी
चिपक गयी मुझसे।
दीमक लग गयी मेरे
मन में
भरभरा कर गिर गयी
मेरे मनसूबें की इमारत।
घुन लग गया मेरे
सपनों को
धूल - धूल हो
गयीं मेरी रातें ।
ग्रहण लग गया
मेरे इरादों को
कागज़ की नाव
साबित हुईं मेरी सारी कोशिशें।
मेरी भूख को मार
गया लकवा
और मेरी प्यास हो
गयी लूली लंगड़ी।
जीवन के आसमान पर
छा गयी धुंध
और आ गयीं
आंधियां मुसीबतों की ।
तब अंगड़ायी ली
मेरी अना ने, मेरे ज़मीर ने
और ज़िन्दगी की
पतंग की डोर थामी मैंने हाथों में
हौसलों के पंख
लेकर मैंने उड़ान भरी
अरमानों के आसमान
में।
इच्छाओं के बीज
डाले कोशिशों की धरती पर।
सफलता की फसल
लहलहाने लगी
यशकी महक उड़ कर
दूर दूर जाने लगी।