पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ• राजेन्द्र मिलन की एक कविता जिसका
शीर्षक है “जियो-जीने दो”:
ग़म में नहीं दम यारो सबको बताओ
जियो और जीने दो खुशियां मनाओ
तुम हिन्दू ईसाई रहो याकि मुस्लिम
पर इंसानियत को तनिक मत लजाओ
मंदिर या गिरजा कि मस्जिद में जाओ
मगर दिल का दीपक न हरगिज बुझाओ
धरम चाहे जो हो
नहीं दोष उसमें
विचारों में तोलो नहीं खोट उसमें
तुम्हारी निगाहों में बल जो पड़े हैं
टटोलो न पाओगे तुम जोश उसमें
अगर सच सुनो तो सुनाएं तुम्हें हम
आपस में मिल भाईचारा बढा़ओ
तुम्हें भेजा
मालिक ने इंसां बनाके
दया धर्म करुणा का पुतला बनाके
न हिंदू तुम्हें उनको मुस्लिम बनाया
न भेजा कोई संत मुल्ला बनाके
तुम्ही ने बनाई ये फिरका़ परस्ती
मत आपस में अबऔर कटुता बढा़ओ
अरे भाई है चार दिन ज़िंदगानी
दुनिया में रह जायेगी बस कहानी
अगर तुमने पोंछे न आंसू किसी के
भला छोड़ जाओगे क्या तुम निशानी
खुशियां लुटाना ही जीवन का मकसद
गले से लगो और गले से लगाओ ।
ग़म में नहीं दम यारो सबको बताओ
जियो और जीने दो खुशियां मनाओ
तुम हिन्दू ईसाई रहो याकि मुस्लिम
पर इंसानियत को तनिक मत लजाओ
मंदिर या गिरजा कि मस्जिद में जाओ
मगर दिल का दीपक न हरगिज बुझाओ
विचारों में तोलो नहीं खोट उसमें
तुम्हारी निगाहों में बल जो पड़े हैं
टटोलो न पाओगे तुम जोश उसमें
अगर सच सुनो तो सुनाएं तुम्हें हम
आपस में मिल भाईचारा बढा़ओ
दया धर्म करुणा का पुतला बनाके
न हिंदू तुम्हें उनको मुस्लिम बनाया
न भेजा कोई संत मुल्ला बनाके
तुम्ही ने बनाई ये फिरका़ परस्ती
मत आपस में अबऔर कटुता बढा़ओ
दुनिया में रह जायेगी बस कहानी
अगर तुमने पोंछे न आंसू किसी के
भला छोड़ जाओगे क्या तुम निशानी
खुशियां लुटाना ही जीवन का मकसद
गले से लगो और गले से लगाओ ।