पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्येन्द्र मण्डेला की एक कविता जिसका शीर्षक है “उमरिया उस्तादी”:
रोज बदलती ताप, तपिश पर,उम्र उमंगें चढ़ती है।
रुप अनूप बना मनिहारी, नये सितारे जड़ती है।
धवल रंग की धूप भूप को नवल बनाकर छोड़ेगी,
प्यास, प्यार पानी को पाने,जड़े हमेशा बढ़ती है।
रीत राधिका प्रीत जोड़कर,योवन पर इठलाती है
राग रमणिका जीत छोड़कर रोहन को झुठलाती है।
मोहन के सम्मोहन से ना,आकुलता की छटी व्यथा,
व्याकुलता की भूख मिटाने कथा भागवत पढ़ती है।
मौसम शुष्क, मधुर,भीगा हो,रह रह कसक जगाता है।
तन के भय को,वय के क्षय को,दम का दंभ भगाता है।
उपालंभ गर दे अन्तर्मन, तुरंत मोह माया को ध्याता,
ज्ञाता होकर विकल विदुषी, रोज बहाने गढ़ती है।
वाक चातुर्य को बना सहेली,पींग मारती झौंठा देकर।
मोह माधुर्य को गिना पहेली,ढींग हांकती सोटा लेकर।
क्या समझूं,और किसकी मानू,अक्ल दखल ना देती है,
शक्ल झूंठ का दर्पण लखकर,नवल कसीदे कढ़ती है।