पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोहन लाल सिंह की एक ग़ज़ल:
पतझर आए क्या गमगीन हो गए ।
वह मधुमय गीत ख्वाब कहाँ खो गए ।।
ओ बहारें मौसम उदासीन हो गए ।
कभी ओ आलम गुलमोहर की तरह ।।
आज बागवां कहाँ आँधियों में खो गए ।
वो चाँद वो सितारे चाँदनी की तरह ।
वो नीली आसमाँ नयनों सा खिला ।।
क्यों गुमसुम हो आँसू बहा रही ।
ऐ कसक टीस वेदना बना जेहन पर भारी ।।
हौसला रख आऐगा बसन्त होगा ।
पतझर पर भारी ।।
फिर ऐ गुल से गुलिस्तां गुलजार होगा ।
हर सूरत में सावन में बरसात होगा ।।
हारकर पतझड़ बसंत गीत गाऐगी।
जब मेरे हमदम मेरे मीत खुशिया मनाऐगी ।।
पतझर आए क्या गमगीन हो गए ।
वह मधुमय गीत ख्वाब कहाँ खो गए ।।
ओ बहारें मौसम उदासीन हो गए ।
कभी ओ आलम गुलमोहर की तरह ।।
आज बागवां कहाँ आँधियों में खो गए ।
वो चाँद वो सितारे चाँदनी की तरह ।
वो नीली आसमाँ नयनों सा खिला ।।
क्यों गुमसुम हो आँसू बहा रही ।
ऐ कसक टीस वेदना बना जेहन पर भारी ।।
हौसला रख आऐगा बसन्त होगा ।
पतझर पर भारी ।।
फिर ऐ गुल से गुलिस्तां गुलजार होगा ।
हर सूरत में सावन में बरसात होगा ।।
हारकर पतझड़ बसंत गीत गाऐगी।
जब मेरे हमदम मेरे मीत खुशिया मनाऐगी ।।