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कविता: मोम की गुड़िया (कल्पना गुप्ता "रतन", जम्मू एंड कश्मीर)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना गुप्ता "रतन" की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मोम की गुड़िया”: 
 
कभी तोड़ी जाती है
कभी जोड़ी जाती है
समझ गुड़िया प्लास्टिक
मरोड़ी जाती  है वह।
 
कच्ची  मिट्टी   है  वह
पुरुष  प्रधान  समाज  में
पुरुषों की इच्छा के अनुसार
ढाल  दी  जाती  है वो।
 
कई  प्रकार के  व्यक्तियों
द्वारा  शब्दों  के शूलों से
अलग-अलग आकारों में
बदल  दी  जाती  है  वो।
 
वह मोम की गुड़िया दिन रात
जलती है बहाती है आंसू
तपती जलन से पिघल कर
नए रूप में आ जाती है वो।
 
क्या  होता   उसका  अपना
पराया बन जाता उसका सपना
दूसरों  के  सपनों  में  आकर
यूं  ही उम्र  गुजार  देती है वो।
 
सेवा  करना  नारी  का  धर्म
संस्कार निभाना नारी का धर्म
सास ससुर की सेवा उसका धर्म
उसकी‌ सेवा  किसका‌  धर्म।