पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “आनन्द सिंह चौहान” की एक कविता जिसका शीर्षक है “प्रश्नवाचक चिह्न!”:
आज सालों बाद
सरकारी बसस्टैंड से लौट रहा था
दरअसल ये सरकारी बसें
न्यूनतम समर्थन मूल्य में
हर गाँव, ढ़ाणी, शहर पहुंचती हैं!
इतना ही नहीं
चक्कर काट आती हैं
पूजाघरों और ईबादत खानों के भी!
एक काली!
रंग की बात है
जो बिल्कुल मेरे जैसी!
उसकी गोद में बैठी थी
चार-पांच साल की लड़की
वह काली!
उस लड़की का कान खुजा रही थी।
जली हुई तीली से
यूँ खुजा रही थी,
खून झर रहे कान को
जीभ से लपलपाता चाहता है!
पर जीभ पहुंच नहीं पाती
जबकि हर जगह वही पहुंचती है।
लड़की के कान से भी
खून ही झर रहा था।
इसे हॉस्पिटल ले जाऊं
पर पता नहीं
अनजाने भय से ऐसा कर नहीं पाया!
हालांकि मेरे दोनों बच्चें साथ थे
एक कि उम्र
उस लड़की की उम्र से
थोड़ी ही ज्यादा थी।
कार की ड्राइविंग सीट पर बैठते ही
मेरी बेटी बोली-
पापा आपने देखा नहीं क्या?
मैंने ईधर और उधर देखा
फिर मन से कहा
ये बेटियां वक्त से पहले
क्यों बड़ी हो जाती हैं?
क्यों नहीं देख पाती
बाप को ऊहापोह में!
कार से उतरकर बढ़ा उस ओर
इतने में भाप चुकी थी वह काली
हम दोनों ने पचास मीटर का फासला
आधा-आधा तय किया था!
मैं उस लड़की का कान
बिल्कुल नहीं देखना चाह रहा था।
मैंने कहा
चलो गाड़ी में बैठो
मैं हॉस्पिटल ले जाता हूँ
पर काली ने मात्र दस रुपए मांगे!
कहा कि खुद इलाज कराऊंगी।
खून झरते इस कान से
वह काली
और भी कई पुष्ट बच्चे पैदा करेगी
उनका पेट भी भरेगी!
फिर खुद लड़की झर जाएगी!
तब मेरी बेटी की आँखों में
एक चिह्न तैर रहा था!
वो प्रश्नवाचक का चिह्न था।
और कार को आगे बढ़ा दिया था।