पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “जितेन्द्र 'कबीर'” की कुछ रचनाएं:
सोचो जरा उनके बारे में भी
कि इन सर्दियों में महंगी
ब्रांडेड रजाई नहीं खरीद पाए,
कड़कती सर्दी में शरीर पर
एक अदद कपड़ा,
कितने दुखी होंगे वो?
कि वजन कम नहीं हो रहा
महंगे तरीके अपनाकर भी,
खाने को दो जून की रोटी,
कितने दुखी होंगे वो?
कि महंगी गाड़ियां नहीं हैं
तुम्हारे पास अभी,
चलने के लिए पांव में
चप्पल भी,
कितने दुखी होंगे वो?
कि काम के चलते
वक्त नहीं मिलता तुम्हें
जिंदगी का आनंद लेने का,
भरोसा अगले पल का
कि कब जैसे गोलीबारी
बमबारी हो जाए,
कितने दुखी होंगे वो?
हमारे साथ?
हमारे हाथ से चली जाए,
काम धंधा बंद करने की,
लग जाए कोई बट्टा,
टूटकर बिखर जाए,
अपनी हमसे अलग
या फिर धोखेबाज कोई
जिंदगी में टकरा जाए,
प्रियजन की जान चली जाए,
गई तो नहीं है
परेशानियां बड़ी हैं माना लेकिन
वो इंसान के लिए नई तो नहीं हैं,
वो उजाले पर विजयी तो नहीं है,
हो खड़े संघर्ष की राह पर बढ़ा कदम,
और नियति का दे तोड़ भ्रम,
इंसान के हौसले, इरादों एवं
जीवन शक्ति की,
फिर जिंदा होकर खुद को
मुर्दा क्यों मान लिया जाए?
हमारा धर्म मानने वालों में से किसी का,
हताहत हुआ निर्दोष कोई,
फिलहाल खतरा है नहीं अब तक
इस तरह की बेमौत रुखसती का,
चुप्पी साधकर बैठने वालो
खून जिसके मुंह लग चुका है
वो किसी न किसी बहाने से
एक दिन नंबर लगाएगा तुम सभी का।
बांट रहा है अभी तुम्हें वो,
सबमें फूट डालकर हर एक को अकेला खड़ा,
सोचकर यह हत्यारों के पक्ष में
चुप्पी साधकर बैठने वालो
हर हत्या इन्सानियत की है हत्या
समझोगे नहीं अगर तुम
तो हश्र वैसा ही होने वाला है तुम सभी का।
ईश्वर के साथ,
कोई भी सौदा अनंतकाल तक
टिक ना पाया।
स्वार्थ के लिए उन्होंने
पता नहीं कितने निर्दोषों का दिल दुखाया,
पता नहीं कितने निर्दोषों का खून बहाया,
जाते समय अपने साथ कोई भी वस्तु
चाहकर भी न ले जा पाया।
खाद्य पदार्थों की महंगाई से जनता को
जरूरत नहीं है परेशान होने की,
देश में बढ़ रही हैं मोटापे से सम्बन्धित
कई बीमारियां,
यह तरीका अपनाया है,
जो किसी ने बोला कि सरकार ने ऐसा करके
बिचौलियों को लाभ पहुंचाया है।
पैट्रोलियम पदार्थों की महंगाई से जनता को
जरूरत नहीं परेशान होने की,
देश में बढ़ रही है प्रदूषण से सम्बन्धित
कई परेशानियां,
यह तरीका अपनाया है,
जो किसी ने बोला कि सरकार ने ऐसा करके
अपना खजाना बढ़ाया है।
मोबाइल डाटा की महंगाई से जनता को
जरूरत नहीं परेशान होने की,
देश में बढ़ रही हैं आंखों व दिमाग से
सम्बन्धित कई परेशानियां,
यह तरीका अपनाया है,
जो किसी ने बोला कि सरकार ने ऐसा करके
लोगों को चूना लगाया है।
वोट के अधिकार के लिए
किसी योग्यता या मेहनत की
जरूरत नहीं पड़ती,
होता है,
बन जाता है इंसान
एक 'वोटर'
या फिर अनपढ़,
या फिर मूर्ख,
या फिर दुर्जन,
या फिर कोई हत्यारा ही,
मेहनत, काबिलियत की
जरूरत कोई ना हो,
करेंगे लोग,
बिक जाते हैं कई शराब और
रुपयों के पीछे,
कई वस्तुओं के लालच में,
जाति और धर्म के नाम पर,
सबसे निचले पायदान पर
होते है
ईमानदारी, अच्छाई, शिक्षा,
बहुत अच्छी व्यवस्था है
लेकिन हमनें अपनी मूर्खता से
इसे विकृत करने में कोई
कसर नहीं छोड़ी।
हैं उसे,
दवाई और कमाई के कारोबार में,
मरीजों के गैर-जरूरी टेस्ट और
गैर-जरूरी दवाईयां लिखने तक
सीमित है।
हैं उसे,
झूठ के व्यापार में,
अपने मुवक्किलों को कानूनी पेचीदगियों
में उलझाकर पैसे ऐंठने तक
सीमित है।
हैं उसे,
अंधविश्वासों के व्यापार कारोबार में,
अपने यजमानों को सच्चे झूठे
उपाय बताकर पैसे ऐंठने तक
सीमित है।
घर का काम करने के लिए
ईमानदार और मेहनती लोग नहीं मिलते,
मिलते हैं मुश्किल से ही,
बिजली की फिटिंग वाले भी,
ठीक करने वालों के पास होती हैं कतारें लगीं,
काम है मुश्किल बड़ा,
लगाने पड़ते हैं जुगाड़ कई,
जायज दाम में अच्छी चाय और खाना भी
आजकल लोगों को आसानी से नसीब नहीं,
बैठ गये हो घर पर ही नौकरी का इंतजार करने
तो बेरोजगारी है तुम्हारे लिए समस्या बड़ी,
काम करने वालों को कभी भी
काम की कमी रहती नहीं।