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हिमाचल प्रदेश के चम्बा से रचनाकार जितेन्द्र 'कबीर' की कुछ रचनाएं


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “जितेन्द्र 'कबीर'” की कुछ रचनाएं:
 
सोचो जरा उनके बारे में भी
 
तुम दुखी हो
कि इन सर्दियों में महंगी
ब्रांडेड रजाई नहीं खरीद पाए,
जिन्हें मयस्सर नहीं
कड़कती सर्दी में शरीर पर
एक अदद कपड़ा,
कभी सोचा है
कितने दुखी होंगे वो?
 
तुम दुखी हो
कि वजन कम नहीं हो रहा
महंगे तरीके अपनाकर भी,
जिन्हें मयस्सर नहीं
खाने को दो जून की रोटी,
कभी सोचा है
कितने दुखी होंगे वो?
 
तुम दुखी हो
कि महंगी गाड़ियां नहीं हैं
तुम्हारे पास अभी,
जिन्हें मयस्सर नहीं
चलने के लिए पांव में
चप्पल भी,
कभी सोचा है
कितने दुखी होंगे वो?
 
तुम दुखी हो
कि काम के चलते
वक्त नहीं मिलता तुम्हें
जिंदगी का आनंद लेने का,
जिन्हें मयस्सर नहीं
भरोसा अगले पल का
कि कब जैसे गोलीबारी
बमबारी हो जाए,
कभी सोचा है
कितने दुखी होंगे वो?
 
हार क्यों मान ली जाए?
 
बुरे से बुरा क्या हो सकता है
हमारे साथ?
यही कि हमारी धन - संपत्ति
हमारे हाथ से चली जाए,
नौबत आ पड़े पेट पालने वाला
काम धंधा बंद करने की,
सामाजिक मान - मर्यादा पर
लग जाए कोई बट्टा,
या फिर अरमान कोई प्यारा
टूटकर बिखर जाए,
 
सफर का साथी राह कर ले
अपनी हमसे अलग
या फिर धोखेबाज कोई
जिंदगी में टकरा जाए,
 
ज्यादा से ज्यादा बुरा क्या होगा?
यही कि हमारी अथवा हमारे किसी
प्रियजन की जान चली जाए,
 
लेकिन अभी हमारी जान
गई तो नहीं है
परेशानियां बड़ी हैं माना लेकिन
वो इंसान के लिए नई तो नहीं हैं,
रात अंधेरी है बहुत लेकिन अब तक
वो उजाले पर विजयी तो नहीं है,
 
तो उठ!
हो खड़े संघर्ष की राह पर बढ़ा कदम,
राख से कर तिलक अपना
और नियति का दे तोड़ भ्रम,
कि हार मानना है मौत
इंसान के हौसले, इरादों एवं
जीवन शक्ति की,
जब तक है सांस तब तक है आस
फिर जिंदा होकर खुद को
मुर्दा क्यों मान लिया जाए?
 
 
नंबर आएगा सभी का
 
कत्ल नहीं हुआ अब तक
हमारा धर्म मानने वालों में से किसी का,
हमारी जाति में से भी नहीं
हताहत हुआ निर्दोष कोई,
आस-पड़ोस सुरक्षित और हमारे ऊपर भी
फिलहाल खतरा है नहीं अब तक
इस तरह की बेमौत रुखसती का,
सोचकर यह हत्यारों के पक्ष में
चुप्पी साधकर बैठने वालो
खून जिसके मुंह लग चुका है
वो किसी न किसी बहाने से
एक दिन नंबर लगाएगा तुम सभी का।
 
धर्म, नस्ल, जाति का ठप्पा तुम पर लगाकर
बांट रहा है अभी तुम्हें वो,
शिकार बनाएगा तब जब कर देगा
सबमें फूट डालकर हर एक को अकेला खड़ा,
वो तुम्हारे हित में मारे जा रहा है सबको
सोचकर यह हत्यारों के पक्ष में
चुप्पी साधकर बैठने वालो
हर हत्या इन्सानियत की है हत्या
समझोगे नहीं अगर तुम
तो हश्र वैसा ही होने वाला है तुम सभी का।
 
कोई कुछ साथ न ले जा पाया
 
रिश्वतें देकर रुपयों-पैसों,
कीमती धातुओं, हीरे-जवाहरात की,
दिन-रात स्तुति गान में रमे रहकर,
सौदे बहुत किये लोगों ने
ईश्वर के साथ,
अफसोस!
कोई भी सौदा अनंतकाल तक
टिक ना पाया।
 
अपने लौकिक एवं पारलौकिक
स्वार्थ के लिए उन्होंने
पता नहीं कितने निर्दोषों का दिल दुखाया,
अपने ईश्वर को प्रसन्न करने के नाम पर
पता नहीं कितने निर्दोषों का खून बहाया,
बड़े-बड़े साम्राज्यों एवं जागीरों का बना स्वामी,
अफसोस!
जाते समय अपने साथ कोई भी वस्तु
चाहकर भी न ले जा पाया।
 
 
परेशान होने की जरूरत नहीं
 
दिन - प्रतिदिन बढ़ती
खाद्य पदार्थों की महंगाई से जनता को
जरूरत नहीं है परेशान होने की,
जरूरत से ज्यादा खाना खाने से
देश में बढ़ रही हैं मोटापे से सम्बन्धित
कई बीमारियां,
उसके समाधान के लिए जनहित में सरकार ने
यह तरीका अपनाया है,
खबरदार!
जो किसी ने बोला कि सरकार ने ऐसा करके
बिचौलियों को लाभ पहुंचाया है।
 
दिन - प्रतिदिन बढ़ती
पैट्रोलियम पदार्थों की महंगाई से जनता को
जरूरत नहीं परेशान होने की,
जरूरत से ज्यादा गाड़ियां होने से
देश में बढ़ रही है प्रदूषण से सम्बन्धित
कई परेशानियां,
उसके समाधान के लिए जनहित में सरकार ने
यह तरीका अपनाया है,
खबरदार!
जो किसी ने बोला कि सरकार ने ऐसा करके
अपना खजाना बढ़ाया है।
 
दिन - प्रतिदिन बढ़ती
मोबाइल डाटा की महंगाई से जनता को
जरूरत नहीं परेशान होने की,
जरूरत से ज्यादा मोबाइल चलाने से
देश में बढ़ रही हैं आंखों व दिमाग से
सम्बन्धित कई परेशानियां,
उसके समाधान के लिए जनहित में सरकार ने
यह तरीका अपनाया है,
खबरदार!
जो किसी ने बोला कि सरकार ने ऐसा करके
लोगों को चूना लगाया है।
 
बिकते - बहकते वोटर
 
लोकतंत्र में...
वोट के अधिकार के लिए
किसी योग्यता या मेहनत की
जरूरत नहीं पड़ती,
बस पैदा होना ही काफी
होता है,
 
अठ्ठारह का होते ही
बन जाता है इंसान
एक 'वोटर'
चाहे पढ़ा लिखा हो
या फिर अनपढ़,
चाहे समझदार हो
या फिर मूर्ख,
 
चाहे सज्जन हो
या फिर दुर्जन,
चाहे जान बचाने वाला हो
या फिर कोई हत्यारा ही,
 
जिस अधिकार के लिए
मेहनत, काबिलियत की
जरूरत कोई ना हो,
उसकी कद्र भी क्यों कर ही
करेंगे लोग,
 
इसीलिए...
बिक जाते हैं कई शराब और
रुपयों के पीछे,
कई लुभावने वादों के पीछे तो
कई वस्तुओं के लालच में,
और बहुत से बहकाए जाते हैं
जाति और धर्म के नाम पर,
 
इस सारे गोरखधंधे में
सबसे निचले पायदान पर
होते है
ईमानदारी, अच्छाई, शिक्षा,
उन्नति और सेवा भाव,
 
'लोकतंत्र' अपने सही अर्थों में
बहुत अच्छी व्यवस्था है
लेकिन हमनें अपनी मूर्खता से
इसे विकृत करने में कोई
कसर नहीं छोड़ी।
 
पैसे ऐंठने तक सीमित हैं
 
साक्षात् भगवान का रूप मानते
हैं उसे,
कुछ ही हैं लेकिन ऐसे,
ज्यादातर 'डाक्टर' अंधे हुए पड़े हैं
दवाई और कमाई के कारोबार में,
उनका सेवा भाव सिर्फ
मरीजों के गैर-जरूरी टेस्ट और
गैर-जरूरी दवाईयां लिखने तक
सीमित है।
 
न्याय का सच्चा पैरोकार मानते
हैं उसे,
कुछ ही हैं लेकिन ऐसे,
ज्यादातर 'वकील' अंधे हुए पड़े हैं
झूठ के व्यापार में,
न्याय के प्रति उनकी निष्ठा सिर्फ
अपने मुवक्किलों को कानूनी पेचीदगियों
में उलझाकर पैसे ऐंठने तक
 सीमित है।
 
भगवान का एकमात्र प्रतिनिधि मानते
हैं उसे,
कुछ ही हैं लेकिन ऐसे,
ज्यादातर 'पंडे-पुरोहित' अंधे हुए पड़े हैं
अंधविश्वासों के व्यापार कारोबार में,
भगवान के प्रति उनकी भक्ति सिर्फ
अपने यजमानों को सच्चे झूठे
उपाय बताकर पैसे ऐंठने तक
सीमित है।
 
बेरोजगारी का एक पहलू यह भी
 
आजकल लोगों को
घर का काम करने के लिए
ईमानदार और मेहनती लोग नहीं मिलते,
जमीन का काम करने वाले लोग भी
मिलते हैं मुश्किल से ही,
 
नहीं मिलते आसानी से सैनिटरी फिटिंग वाले,
एक बार आने के लिए दस फोन करवाते हैं
बिजली की फिटिंग वाले भी,
 
अच्छे मैकेनिक का पड़ा है हर जगह टोटा,
मोटरसाइकिल, गाड़ी से लेकर मोबाइल टीवी तक
ठीक करने वालों के पास होती हैं कतारें लगीं,
 
अपने बच्चों के लिए अच्छा ट्यूशन टीचर ढूंढना
काम है मुश्किल बड़ा,
अच्छे डॉक्टर के पास पहुंचने के लिए
लगाने पड़ते हैं जुगाड़ कई,
 
बड़े-बड़े टैक्निकल काम छोड़ भी दो तो
जायज दाम में अच्छी चाय और खाना भी
आजकल लोगों को आसानी से नसीब नहीं,
 
अगर डिग्री-डिप्लोमा कोई करके अगर
बैठ गये हो घर पर ही नौकरी का इंतजार करने
तो बेरोजगारी है तुम्हारे लिए समस्या बड़ी,
वरना मेहनत और ईमानदारी से
काम करने वालों को कभी भी
काम की कमी रहती नहीं।