पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “बीना राय” की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है "ईर्ष्या से परे":
नये स्कूल में आज स्नेहा कुलकर्णी का पहला दिन था ।स्कूल की डीसिप्लीन इंचार्ज सारे अध्यापक, अध्यापिकाओं से उनका परिचय करवायीं तो सब आपस में खुसर फुसर करने लगे कि एक और पी जी टी अंग्रेजी? जब कि यहां तो पहले से ही इस पद पर रेनुका मैम हैं। रेनुका मैम अच्छी अध्यापिका के साथ विद्यालय के कार्यक्रमों के सुंदर संचालन के लिए भी जानी जाती थीं उनकी जगह वहां कोई नहीं ले सकता था।
संयोग से स्नेहा मैम भी अपने विषय में पारंगत व मृदुभाषी थीं। उन्हें भी सबसे आदर सम्मान मिलता देख रेनुका की ईष्र्या बढ़ने लगी। ईष्र्या के वशीभूत वह चाहती कि कौन सी ऐसी चाल चलूं कि स्नेहा नाम की बला यहां से चली जाए। अब वह अपने काम पर कम पर स्नेहा जी के खिलाफ चाल पर जादे ध्यान देतीं। स्नेहा जी तक भी ये बातें पहुंचती पर सब जानकर भी अत्यंत शांति और गंभीरता से अपने काम पर ध्यान देतीं पर उन्हें रेनुका से कभी नफ़रत नहीं हुई क्यों कि जीवन के प्रति उनका नजरिया ही निराला था। ईष्र्या से परे जीवन जीतीं और दूसरों को भी यही सीखातीं। कुछ ही दिनों में उन्होंने सबके दिलों में अपनी जगह बना ली पर रेनुका मैम के व्यक्तित्व में ईष्र्या के कारण बहुत गिरावट आ गई। अब वह पहले की तरह किसी भी मसले को साहसपूर्ण ढंग से हल करने में असफल रहने लगीं और विद्यालय प्रबंधक से डांट भी खाने लगीं तथा तनख्वाह में कोई बढ़ोतरी भी नहीं हुई क्यों कि ईर्ष्या रूपी आग किसी और को बाद में पर जिसमें जलती है उसे पहले जला डालती है। इस लिए हमें स्वयं के विकास हेतु स्वयं को ईर्ष्या से परे रखना चाहिए।