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कविता :: मां कभी नहीं थकती || डॉ● दीप्ति गौड़ दीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉदीप्ति गौड़ दीप की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मां कभी नहीं थकती”:

सो रहा है सारा घर...

भर अलसाई सुबह में,

जाग गई है मां ।

घर की सब्जी भाजी की चिंता करते करते,

उड़ेल देती हैं ममत्व का दुलार ।

तनाव भरी गृहस्थी में झोंक देती है अपना सारा जीवन,

सारी खुशियां ।

मां कभी नहीं थकती ।

देती आशीष हरदम,

ढाम्पती बच्चों की कमियों को।

चिंता की लकीरों में जीती,

अचार के मर्तबानों को धूप दिखाते,

पापड़ ,बड़ियों को समेटते,

अपने बच्चों के लिए तपती।

मां कभी नहीं थकती ।

अपने हाथों की मखमली छुअन से ,

दूर कर देती है दिन भर की थकन,

रूठने पर मनाने के तमाम यत्न करती,

त्याग देती रोटी के निवाले।

सहती हर कष्ट ,

मां कभी नही कहती ।

मां कभी नहीं थकती।