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कविता :: आधुनिक मच्छर || अर्चना होता, सम्बलपुर, ओड़िशा ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अर्चना होता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आधुनिक मच्छर”: 

बस्ती में घुस आए यह कुछ मच्छर
भिन्न - भिन्न हुए लगा रहे ये चक्कर
कहीं कोई मिल जाए इंसान
रोग लगा कफन का कर दे इंतजाम
ऐसे ही इंसानी मच्छर घूम रहे हैं
मजदूरों को बेवजह डस रहे हैं
जिनके पास खाने को दाना नहीं
रहने और पहनने को कपड़ा नहीं
ऐसे दुर्बल, निरीह क्या कर पाएंगे
इनका मुकाबला
और धीरे - धीरे मर जाते हैं कुलबुला
अमीरों के घर जहां पैसा पानी की तरह आता है
कहां से आता है कैसे आता है
ना है अब तक किसी को पता
ये घूमते मच्छर इन्हें क्यों नहीं काटते
रोगों से ग्रसित कर इनके शरीर को चाटते
पर ये दौलत वाले ताकतवर जो ठहरे
गर ये मच्छर लगाएंगे उनका चक्कर
काट खाएंगे उल्टा इन्हें ही दबोच कर
यही तो रीति है जमाने की
कमजोर दबता है, बलवान दबाता है
ये दर्द लेते हैं, वे दर्द देते हैं
इनका दुख कोई नहीं बांटने वाले
हजारों हैं उनके दुख सहने वाले
तभी तो इन्हें बलवान कहते हैं
पैसों के बलबूतों पर सब काम करवा लेते हैं
गरीब एक - एक दाने के मोहताज होते हैं
यह लोगों को दानों के लिए मोहताज करते हैं।