पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार पल्लवी जोशी की एक कहानी जिसका शीर्षक है “आखिर क्यों”:
आइने के सामने दुल्हन बन कर नव्या खुद को निहारे जा रही थी।उसे यकीन नहीं हो रहा था नव्या सोहित की दुल्हन बन गई है।
जिसका इंतजार वो 4 साल से कर रही थी।
घर में चहल पहल थी,संगीत से पूरा घर झूम रहा था ।हर तरफ खुशियों का माहोल था।
कुछ ही देर में बारात भी आने वाली थी।
बार-बार नव्या की बलाए उसकी मां ले रही थी।
तभी बाराती पहुंच गई और जोर जोर से बाहर गाजे बजने लगे।
नव्या का इंतेज़ार खतम हुआ और कुछ ही देर में नव्या मंडप पे थी।
विधि विधान के साथ नव्या का शुभ विवाह हुआ और नव्या के मांग में सोहित ने सिंदूर भरकर नव्या को सात जन्मों के लिए अपना कर लिया।नव्या खुशी के मारे रोए जा रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था आखिर नव्या सिन्हा से, नव्या सोहित वर्मा हो गई।
शादी में सोहित ने हर वो रश्म इतनी सिद्धत सी निभाई की जितने भी लोग थे मंडप में सबका दिल जीत लिया। हर कोई कहने लगे कि सिन्हा साहब जैसा दामाद हर बाप को मिले।
कुछ देर बाद नव्या की विदाई हो गई नव्या अपने ससुराल पहुंच चुकी थी।कुछ रश्मे निभाने के बाद नव्या सोहित के कमरे में थी।
नव्या घूंघट खीच कर चहेरा ढके बैठी थी, जिसका इंतेजार नव्या ना जाने कबसे कर रही थी।
सोहित ने घुंघट उठाते हुए कहा :- आज से तुम जन्मों जन्मों के लिए मेरी हो गई नवू।
हम जीत गए, हमारा प्यारा जीत गया।
हम दो से एक हो गए।
आज से मेरा वजूद तुमसे जुड़ गया और तुम्हारी अस्तित्व मुझसे।आज से मैं तुम्हारा और तुम मेरी।
नव्या सोहित को अपने बाहों में भिजते हुए कही :- हां सोहित हम आखिर में जीत गए। क्योंकि हमारा प्यार सच्चा था तुम सच्चे थे। वरना कहा आसान था हमारे लिए एक हो पाना।याद है तुम्हे जब हम पहली दफा मिले थे तो कितना नफरत था ना हम दोनों को एक दूसरे से। कभी ख्यालों में ना सोची थी कि हम एक होगे।
सोहन हसते हुए कहा सच में कितनी अजीब है ना हमारी सफर मुहब्बत के तुम्हारे संग।
कभी नफरत थी हमारे बीच फिर दोस्ती हुई फिर प्यार हुआ और जब प्यार हुआ तो बेइंतहा हुए इतना की एक दूसरे के बैगर जीना मुश्किल हो गया।
और जब तुम्हारी शादी की बात किसी और से घर में चलने लगी तो ऐसा लगा जैसे खुद को खोते जा रहे है हम। मानो "जिस्म तो है मगर जान नहीं , तुमसे अलग होकर कोई पहचान नहीं"।
सच बताऊं तो उस वक्त मुझे एहसास हुआ था कि मैं तुमसे बेइंतहा मोहब्बत करता हूं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता। पहली दफा उस बार ही मैं तुम्हें खोने से डर रहा था और मैं तुम्हें कभी खो नहीं सकता।
और तुम्हरे भाई जो अब "साला है" साले ने खूब अकड़ दिखाई थी।
हाथ पकड़ कर मुझे घर के बाहर निकाल दिया और तुम्हें एक कमरे में बंद।
हम दोनों का भी एक ही जिद थी:- शादी जब भी होगी पापा मां कि मर्जी से, भागकर कभी नहीं करेगे "जुदाई का जहर पीना मंजूर है ,पर मा बाप को जिल्लत का जहर नहीं पीने दूंगी" शायद हमारी सच्चाई ही हमें जीत दिलाई।
कई दिनों की जुदाई के बाद मै पागल हो चुका था मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और तुम्हारे लिए तड़प रहा था मैं ।और तब मेरे मां पापा तुम्हारे घर पहुंचे और वहां भी बात ना बने क्योंकि हमारी जाति एक ना थी । जुदाई में मैं भी तड़प रहा था और उस घर में तुम शायद हमारी जुदाई देखकर तुम्हारे पापा भी पिघल गए और उन्होंने आखिरकार सहमति दे ही दिए हमारे रिश्ते को ।और देखो आज तुम मेरी बाहों में हो। हमारा प्यार सच्चा था अनेकों इम्तेहान के बाद आखिर हम एक हो गए।
दोनों बाते करते करते इश्क के समंदर में डूब गए।
सोहित ने कहा इतनी खूबसूरत तुम लग ही रही थी सोते हुए, मुझसे उठाया नहीं गया।
नव्या सोहित को पीछे ढकलते हुए कही तुमसे बस बाते करवा ले कोई, अभी हमें जाने दो एक अच्छी प्रेमिका तो थी, अब एक अच्छी पत्नी, एक अच्छी बहू भी बनना है।सोहित मुस्कुराते हुए नव्या के सर को चूम लिया।
नव्या नहा कर बाहर आई तो बड़ी भावी ने नव्या को चिढ़ाते हुई कहीं रात अच्छे से गुजरी ना देवर जी ज्यादा परेशान तो नहीं किए।
नव्या शरमाते हुए सिर पर पल्लू खीच कर हसने लगी।
और रसोई में भावी के साथ मिलकर खाना बनाने लगी।
हसते खलेते नव्या अपनी शादी शुदा जिंदगी गुजार रही थी ।
नव्या ऑफिस भी जाती ससुराल को भी संभालती और सोहित के लिए भी समय निकलती।
सोहित भी अपने बिजनेस संभालता और नव्या का खूब ख्याल रखता और हर एक वचन सच्चाई से निभाता ।
देखते देखते नव्या एक साल में एक अच्छी पत्नी, एक अच्छी बहू बन चुकी थी ,या कहे एक कुशल गृहणी बन गई थी।
खुशियों से भरा था जिंदगी नव्या का और उसी खुशियों के माहोल में एक खुशखबरी भी मिली ।अब नव्या मां बनने वाली थी।
नव्या और सोहित अब मुकम्मल होने वाले थे।उनकी प्यार की निशानी अब नव्या के जिस्म में पनप रही थे।
एक लड़की के लिए सबसे खुशी कि घड़ी होती है जब एक नई जिंदगी को अपने भीतर पनाह देती है।
नव्या अब एक लड़की से मां का सफर तय कर चुकी थी।
दोनों घरों में खुशियों की माहौल थे ।
सोहित भी अब नव्या का खाआप ख्याल रखने लगा।
नव्या की सास भी नव्या को काम पर जाने से मना कर चुकी थी ।नव्या अब दिन भर आराम करती और नई जिंदगी जो उसके पेट में पनप रही थी उसको महसूस करती।
सोहित बस नव्या को निहारते रहता और कहता बस तेरी जैसी ही मेरी एक लाडो हो जिसकी सुरत शिरत सब तुम्हरे जैसे हो ।
और नव्या कहती ना मुझे तो तू तुम्हारे जैस ही एक बिटिया चाहिए जिसका नयन नक्श तुम्हारे जैसे हो,दोनों बस ख्यालों में खोए रहते।
दिन बीतते गए और देखते देखते आखरी महीने थे यानी की 9 महीने कुछ दिन बाद नव्या अपने जिस्म में पनपने वाली एक नई जिंदगी को जन्म देने वाली थी।
सोहित सब इंतेज़ाम कर चुका था शहर के सबसे बड़े डाक्टर के पास वो नव्या को डिलीवरी के लिए ले गया।वो चाहता था नव्या को कोई भी परेशानी ना हो जब वो उसकी प्यार की निशानी को उस दुनिया में ला रही हो।
नव्या जब ऑपरेशन रूम जा रही थी सोहित उसका हाथ थामे था उसके हिम्मत को बढ़ा रहा था। ऑपरेशन रूम के भीतर नव्या दर्द से तड़प रही थी और उधर सोहित परेशान रो रहा था।ना जाने मेरी नवु पर क्या बीत रही होगी। सोहित की हिम्मत उसकी मां बढ़ रही थी।
सोहित को ऐहसास था कि एक बच्चे को जन्म देना बहुत ही दर्द सहने का काम होता है।
सोहित खुशी के मारे नाचने लगा और झट से नव्या के पास पहुंच गया।नव्या की अभी होस नहीं आया था तो दूर से बचे को गोद में लेके सोहित नव्या को देखे जा रहा था।
जब नव्या अपनी आंखे खोली तो सोहित वहीं बैठा हुआ था नव्या को चूमते हुए सोहित कहा नवू तुम ..
तुम ठीक हो ना? तुम्हें दर्द तो नहीं है ना ।नव्या मुशकुराते हुए कही बस तुम हो पास मेरे तो दर्द नहीं है। सोहित ने कहा नवू तुम बिल्कुल अपनी तरह एक बेटी जनी हो। नव्या अपनी बेटी को अपने हाथों में लेते हुए बोली सोहित हम मुकम्मल हो गए।
अस्पताल से छुट्टी होकर नव्या अपने घर पहुंची ।
कुछ रश्म अदा की गई पूजा पाठ हुआ। और सोहित के पापा ने अपनी पोती का नाम सोहित्या रखा जिसका मतलब होता है ( सभी की हितैषी)
। दादा दादी चाचा चाची सब की दुलारी थी ।सब की आंखों का तारा थी।
सोहित्या के घर में आने से सब खुश रहते थे दिन भर सब के होठ पर एक ही नाम रहता था सोहित्या, सोहित्या ,सोहित्या।
अब नव्या एक अच्छी मां बनने की कोशिश में लग गई।
अपने बच्ची के नींद जागती उसके ही नींद सोती ।
सोहित भी कोई कसर नहीं छोड़ता नव्या का साथ देने में वो भी अपनी जीम्मेदारिया बेहतरीन तरीके से निभाता। बिजनेस में खूब मन लगता ताकि अपने बेटी कि परवरिश में कोई कसर ना छूटे।
कहा मंजूर था नव्या और सोहित की अक्स , लसोहित्या को इस दुनिया में और कुछ दिन रहना।
ये बात पता चलते ही सोहित के पैरो तले जमीन खिसक गई वो गिर के बैठ गया जमीन पर।
सोहित अपनी बेटी को निहारते हुए मोटी मोटी आंसू बहाए जा रहा था।
जब नव्या को इस बात का पता चला तो वो टूट के बिखर चुकी थी वो बस रो रो के अपनी सास से कहे जा रही थी:- मां मै तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ी फिर मेरी खुशियों को नजर क्यों लग गई मेरी लाडो को क्यों कुछ और दिन ही इस दुनिया में रहना है।फिर जब भगवान जी को मुझसे मेरी लाडो को छीनना था तो, क्यों मुझे मां बनाया ।
उसकी बातों का जवाब नहीं था उसके सास के पास। वो बस खामोश होके सुन रही थी नव्या को और बेचारी इतनी मजबूर थी कि अपनी पोती, अपनी वंश को इस दुनिया में बढ़ते नहीं देख सकती थी।
सोहित्या को सबने इतना लाड दिया , उसके लिए इतने सपने संजोए गए उसके लिए ना जाने कितनी खुशियां चुनी गई थी ,लेकिन अब वो नहीं जी सकती ज्यादा दिन।
एक मां के लिए कितना दर्दनाक पल होते होगे ना जब उसको पता हो कि उसके संतान बस कुछ दिन के मेहमान है।
नव्या खाना पीना सब त्याग रही थी धीरे धीरे वो कमजोर होते जा रही थी। सोहित उसको बहुत समझता लेकिन नव्या को कहा कुछ भी समझ आता ।नव्या और सोहित मंदिर के सब दरवाजे हो आई।हर दुआयों ने मांग लिए । सोहित्या के नाम के ना जाने कितने धागे बांध आई।सात समंदर पार भी अपने लाडो के इलाज के खातिर हो आए।पर कहीं भी ना उसके दर्द को साहरा मिला।
नव्या धीरे धीरे इतनी कमजोर हो गई की उसके सीने से दूध भी उतारना मुश्किल हो गया। बीतते समय के साथ सोहित्या की हालत बिगड़ते गई।
एक शाम नव्या सोहित्या को अपनी कंधे पे लिए सुलाने की कोशिश में घूम घूमकर लोरी गा रही थी ।तभी अचानक से नव्या ने महसूस की सोहित्या कोई हरकत नहीं कर रही है वो अचानक से चुप हो गई और सिर को लचका कर औंधे मुंह लटक गई।
नव्या घबराते हुए अपनी लाडो की कांधे से उतारकर नीचे हाथों में लाई तो आंख खुली थी सोहित्या की ओर बदन स्थिर।
नव्या तो जैसे पत्थर हो गई ना रोई ना चीखी बस अपनी लाडो को हाथ में लिए खड़ी रही।
सोहित आया और देखा नव्या खामोश है तभी वो समझ गया जब अपनी बेटी के तरफ देखा तो जोर से चिखा तब उसके मां पापा भाई और भावी आए उसके कमरे में।सब समझ चुके थे कि सोहित्या अब नहीं रही। सब रोए सबके आंखों से बाढ़ बह रही थी, पर एक नव्या थी जो पत्थर हो चुकी थी सबने बहुत कोशिश की उसे रुलाने की पर उसके आंखों से शीत ना फूटी और एक कोने में बैठी झूले झुलाते रही।
सोहित भी टूट कर बिखर चुका था लेकिन उस नव्या के लिए मजबूत खड़े रहना था ।
वो जनता था नव्या को जब तक रुलाया नहीं जाएगा तब तक उसके लिए खतरा है।
वो नहा धोकर आया और नव्या को जाकर नहाया।
नव्या ना बोलती ना रोती ना चीखती ना चिलाती वो बस एकदम खामोश रहती।
सोहित उससे बाते करता उसको रुलाने की कोशिश करता उसे जताता की जिंदगी अभी बाकी है।लेकिन नव्या कुछ ना कहती ना सिसकती
वो बस झूले के पास बैठे उसे झुलाते रहती।
सोहित जोर जोर से नव्या को झकझोर कर बोलने लगा नव्या अब तो संभालो, सोहित्या नहीं है इस झूले में। तुम्हें समझना होगा हमारे लिए।तुझे मेरी कसम है नव्या अब तो रो लो। क्यों नहीं समझती सोहित्या को बस इतना ही दिन हमारी बेटी बन कर रहना था। नव्या तुम्हें मै नहीं खो सकता मै भी टूट गया हूं ये सब संभालते संभालते,अगर तुम ना संभली तो मै भी मर जाऊंगा, नहीं मंजूर है मुझे ऐसी जिंदगी तुम्हारे बैगर , तभी नव्या जोर जोर से रोने लगी सोहित अपनी बाहों में नव्या को खीच कर रोने लगा।तभी नव्या सोहित
से बोली:- आखिर क्यों?
इस "आखिर क्यों" का जवाब सोहित के पास भी ना था।
वो बस नव्या को अपने बाहों में भरे रहा और रात भर रोते रोते गुजार दिया।।।।