पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली
सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज आपके सामने प्रस्तुत है
रचनाकार डॉ•त्रिलोकी सिंह की एक कविता जिसका
शीर्षक है “नारी की महिमा”:
नारी की अतुलित महिमा का,
कोई भी पार न पाया है।
वेदों ने देवों के समान,
है अटल सत्य यह सकल सृष्टि,
नारी को श्रेष्ठ बताया है,
नाना कृतियों के माध्यम से,
वह पृथक - पृथक संबंधों सँग,
संबंध - निर्वहन में हरगिज,
नारी नर - नारी की जननी,
जननी, अनुजा औ' तनुजा के,
बनकर पति की सहचरी सदा,
शिशुओं के पालन - पोषण में,
तब - तब पातिव्रत के बल पर,
पल भर में ही दुष्कर्मी के,
उन आतताइयों का वध कर,
गृह - व्यवस्थापिका होने से,
है अंग - अंग सौंदर्य - पुंज,
पीयूष - स्रोत - सी बहती यह,
अपमानित होने पर विनाश -
करती, यह ध्यान सदा रखना ।।17।।
सम्मान - प्राप्ति की अधिकारी,
अनगिनत नारियों की गाथा,
सद्गुण से भूषित नारी का,
निज स्नेह - सुधा से सिंचित कर,
कुल की पीड़ा के शमन हेतु,
अविरल रसस्रोत प्रवाहित कर,
तुम ही हर घर की शोभा हो,