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कविता: नारी की महिमा (डॉ•त्रिलोकी सिंह, हिन्दूपुर, करछना, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉत्रिलोकी सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “नारी की महिमा”:

नारी की अतुलित महिमा का,
कोई भी पार न पाया है।
वेदों ने देवों के समान,
नारी को पूज्य बताया है ।।1।।
 
उपनिषदों और पुराणों में,
नारी की महिमा वर्णित है।
है अटल सत्य यह सकल सृष्टि,
नारी से ही संचालित है ।। 2 ।।
 
इस शक्तिस्वरूपा नारी की,
महिमा गाई सद्ग्रंथों ने।
नारी को श्रेष्ठ बताया है,
हर संप्रदाय, हर पंथों ने ।। 3 ।।
 
साहित्य-साधकों ने भी तो,
इस नारी का सम्मान किया।
नाना कृतियों के माध्यम से,
इस नारी का गुणगान किया ।।4।।
 
नारी अनुपम कृति ब्रह्मा की,
जग को संचालित करती है।
वह पृथक - पृथक संबंधों सँग,
अपना व्यवहार बदलती है ।। 5।।
 
नारी नित कितने रूपों में,
इस जग में शोभित होती है।
संबंध - निर्वहन में हरगिज,
मर्यादा कभी न खोती है ।। 6 ।।
 
नारी से ही नर होते हैं,
नारी से ही होती नारी ।
नारी नर - नारी की जननी,
जग में नारी सबसे न्यारी ।। 7।।
 
इस अखिल विश्व में नारी यह,
कितने संबंध निभाती है।
जननी, अनुजा औ' तनुजा के,
संबंधों में ढल जाती है ।। 8 ।।
 
बनती जब कभी भार्या यह,
पति को परमेश समझती है।
बनकर पति की सहचरी सदा,
निज धर्म पूर्ण सब करती है ।।9।।
 
शिशु को देकर के जन्म यही,
शिशु की जननी बन जाती है।
शिशुओं के पालन - पोषण में,
जननी का धर्म निभाती है ।।10।।
 
सावित्री - सीता का स्वरूप,
जब-जब नारी धारण करती।
तब - तब पातिव्रत के बल पर,
यम से भी रंच नहीं डरती ।। 11।।
 
नारी नवदुर्गा का स्वरूप,
जब आत्मसात कर लेती है।
पल भर में ही दुष्कर्मी के,
प्राणों को वह हर लेती है ।। 12।।
 
जब कुपित पापियों पर होती,
पल में ही भृकुटी तन जाती।
उन आतताइयों का वध कर,
उनकी संहारक बन जाती ।।13।।
 
नारी - सा रत्न नहीं कोई,
हर घर में यह शोभा पाती।
गृह - व्यवस्थापिका होने से,
नारी गृहलक्ष्मी कहलाती ।।14।।
 
यह अबला सचमुच सबला है,
कोई भी समझ न पाता है।
है अंग - अंग सौंदर्य - पुंज,
जो सबको सहज लुभाता है ।।15।।
 
मानव - मूल्यों की संवाहक,
मानवता की है धुरी यही।
पीयूष - स्रोत - सी बहती यह,
सद्ग्रंथों ने यह बात कही ।।16।।
 
यह शक्ति - बुद्धि की है प्रतीक,
इसका सम्मान सदा करना।
अपमानित होने पर विनाश -
करती, यह ध्यान सदा रखना ।।17।।
 
यह बात भूलना कभी नहीं,
घर का सम्मान यही नारी।
सम्मान - प्राप्ति की अधिकारी,
घर की है शान यही नारी ।।18।।
 
अनगिनत नारियों की गाथा,
सद्ग्रंथों में मिल जाएगी।
सद्गुण से भूषित नारी का,
दुनिया हरदम गुण गाएगी ।।19।।
 
नारी सुरसरि की धारा-सी,
दो कुल को पावन करती है।
निज स्नेह - सुधा से सिंचित कर,
कुल के खातिर मर-मिटती है ।।20।।
 
वह दुःसह वेदना सहकर भी,
नारी का धर्म निभाती है।
कुल की पीड़ा के शमन हेतु,
तन - मन से वह जुट जाती है ।।21।।
 
नारी नीरसमय जीवन में,
रस का संचार सदा करती।
अविरल रसस्रोत प्रवाहित कर,
सुख का विस्तार सदा करती ।।22।।
 
नारी! तू ममता की देवी,
हर रूप तुम्हारा सुंदर है।
तुम ही हर घर की शोभा हो,
तुमसे ही शोभित हर घर है ।।23।।